Monday, September 27, 2010

जन्माष्टमी पर "लल्ला" रोया

किसी मूर्ति से तरल पदार्थ निकलना आज आम बात हो चुकी हैकुछ समय पहले 'साईं बाबा' की मूर्ति से सफ़ेद तरल पदार्थ निकला था जिसे श्रद्धालुओं ने उनका आशीर्वाद स्वीकार कर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया, तो वही जन्माष्टमी के पावन पर्व पर चित्रकूट स्थित श्रीकृष्ण मंदिर में उनकी मूर्ति से तरल पदार्थ निकलाजिसे श्रद्धालुओं ने उनका रोना समझा क्युकी वह तरल पदार्थ उनकी आँखों से जो निकल रहा थाऐसे में आज जब देश और दुनिया तकनीकी की ओर कदम बढ़ा रहे है तब भी उन लोगो की भक्ति कहे या अंधविश्वास जो कि कृष्ण की प्रतिमा से पानी निकलना उनका रोना समझा जा रहा हैदेखा जाए तो श्रद्धालुओं का भगवन का रोना समझा जाना भी सही है, क्योंकि इस कलयुगी भरी दुनिया में हर कोई शख्स रो रहा है चाहे वो गरीब हो या अमीर, तो भगवन भी तो कभी कभी इंसान का ही रूप थे.....

यातायात पर भारी आवारा पशु

शहर की यातायात व्यवस्था कैसी है ये शायद आपको बताने की जरुरत नहीं हैउस पर आवारा पशु भी अपनी आदतों से बाज नहीं रहेआज शहर के हर इलाके में आवारा पशुओं की बीच रास्ते पर रोजाना मीटिंग होती है जिससे यायात व्यवस्था में बाधाएं आती हैनगर निगम इस समस्या पर कोई ज्यादा जोर नहीं दे रही हैंजिनका खामियाजा आज ग्वालियो के आम नागरिको को भुगतना पड़ रहा है

Thursday, September 09, 2010

ग्वालियर शीर्ष पर

जी हाँ, आज ग्वालियर प्रथम स्थान पर पहुच गया है, लेकिन किसी प्रतियोगिता या किसी सेवा के चलते नहीं बल्कि यह औदा इसलिए मिला है क्योंकि राज्य के अन्य शहरों की अपेक्षा ग्वालियर आज सबसे ज्यादा प्रदूषित है। यूँ तो ग्वालियर शहर भ्रष्टाचार, अपराध, और नगर प्रशासन की ख़राब व्यवस्था के चलते नंबर एक पर ही रहता है और आज इसी के साथ ही प्रदुषण के सम्बन्ध में भी उसे वही प्रथम स्थान ही हासिल हुआ है जिसका वह हक़दार है। यूँ तो शहर में हर नुक्कड़ पर , हर चौराहे पर आपको गन्दगी और प्रदुषण की मिसाल देते हुए कई उदहारण मिल जायेंगे लेकिन शहर के सबसे व्यस्त रहने वाले मार्गो में ही सबसे ज्यादा गड्ढें और उन मार्गो पर प्रदुषण देखा जा सकता है। ऐसा नहीं है कि प्रशासन के आला अधिकारी इन मार्गो की स्थिति से रूबरू नही है बल्कि इन अधिकारियों का भी उन्ही मार्गो से रोजाना आना-जाना लगा रहता है जिन मार्गों की हम बात कर रहे है। इन मार्गो में मुख्य रूप से चेतकपुरी, गांधी रोड, सिटी सेंटर, अचलेश्वर रोड, दीनदयाल नगर रोड आदि शामिल है। देखा जाये तो दीनदयाल नगर के मुख्य द्वार पर ही प्रदुषण नियंत्रण केंद्र बना हुआ है जो कि ऐसे केन्द्रों की नियमित दिनचर्या को साफ़ उजागर करके उनके अधिकारियों में कार्य करने की गति को साफ साफ़ देखा जा सकता है और आम नागरिक को परेशानियों का सामना किस हद तक करना पड़ता है यह भी साफ़ हो जाता है। इससे साबित होता है कि ग्वालियर का नगर निगम प्रशासन अपने कार्यों के प्रति "कितना सख्त है और कितना ढीला" हैं।

काहे को दुनिया बनायीं...

भगवान् ने धरती बनाते समय कितनी मशक्क्त की होगी इसका आप और हम शायद अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते। उन्होंने धरती पर प्रकृति को इसलिए निर्मित किया था ताकि यहाँ रहने वाले जीव-जंतु ताज़े भोजन और ताज़ी हवा का आनंद ले सके, किन्तु आज वही मानव भगवन की श्रष्टि "प्रकृति "को नष्ट करने में लगा हुआ है। आज का आधुनिक जीवन जीने वाला मानव अपने आस-पास का वातावरण इस कदर आधुनिकता से भरा हुआ चाहता है कि वह प्रकृति को भी अपने इरादों के बीच में आने नहीं दे रहा और उसे नष्ट किया जा रहा है। क्या पेड़-पौधों और क्या वृक्ष सबको नष्ट कर उनके स्थान पर खुद के लिए बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर ली है और यही उसका मकसद भी बन चुका हैं। यह देख भगवान् भी मायूस हो गया होगा और यह विचार कर रहा होगा कि जिसके लिए मैंने प्रकृति बनायीं वही उसे नष्ट करने में तुला हुआ है, उसके लिए यह कहना मुश्किल नहीं होगा कि मैंने जो दुनिया बनायीं उस दुनिया के लोग इतने हैवान कैसे हो सकते ? उन्होंने ये सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनके दिए हुए तोहफों का ज़मीन पर रहने वाले इस कदर सर्वनाश करेंगे। अब तो वह शायद यही गुनगुना रहे होंगे कि "काहे को दुनिया बनायीं मैंने, काहे को दुनिया बनायीं..."