Tuesday, August 10, 2010

शाही सवारी पर गिरी गाज


यूनियन ने पांच रूटों की मांग की थी, जिसमे में से तीन रूटों को मंजूरी मिली
ग्वालियर की शाही सवारी "तांगा" अब शहर के निर्धारित रूटों पर ही देखने को मिलेंगे। यह बदलाव यातायात सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए किया गया हैं। अब सैलानियों और शौकिया लोग शायद ही इस शाही सवारी का लुत्फ़ उठा सकें।

शहर में तांगा अब प्रशासन द्वारा तय किये गए रूटों पर ही चलेंगे। ये फ़ैसला २७ जुलाई को तांगा यूनियन और प्रशासन के बीच हुई बैठक में लिया गया। दरअसल तांगा यूनियन ने निगम आयुक्त के समक्ष पांच रूटों की मांग की थी, जिसमे से उन्होंने तीन रूटों पर घोडा गाडी दौडाने की स्वीकृति दे दी हैं।

शहर में तांगों की संख्या लगभग दो से ढाई सौ है। तांगा चालक इसी से अपने परिवार का बहार-पोषण करता है। इन तांगा चालको की रोज की कमाई २०० रुपये है, जिसमे से कमाई हुई रकम का आधा हिस्सा घोड़ेके लिए लग जाता है बाकी बचा हुए हिस्से से वो अपने घर का गुजरा करता है, उस पर निगम आयुक्त के इस फैसले से तांगा चालक काफी हताश है। युनुस (तांगा चालक ) का कहना है कि जिन रूटों पर उन्हें तांगा चलने कि स्वीकृति मिली है उन रूटों पर इतनी कमाई नहीं है ऊपर से ऑटो वाहन के आ जाने से उनके व्यवसाय पर काफी असर पड़ा है। उन्होंने बताया कि जिस कीमत पर सवारी को हम चौराहों पर छोड़ते थे उसी कीमत पर ऑटो चालक उन्हें घर के बाहर तक छोड़ देते हैं और वो भी कम समय पर जिससे सवारी तांगे में जाने की बजाये ऑटो में जाना ज्यादा उचित समझती हैं। यूनियन के निर्णय से तांगा चालक केवल संतुष्ट भर है, उन्होंने बताया कि आज भी उनके इस निर्णय पर कार्यवाही जारी है यही कारण है कि इन चालको ने अभी तय किये हुए रूटों पर अपने तांगे नहीं दौड़ाये है। निगम आयुक्त ने बताया कि जिन रूटों पर तांगे चलेंगे उन पर ऑटो चालकोंका घुसना प्रतिबंधित है और यही आदेश तांगा चालकों के लिए भी रहेगा। उन्होंने बताया कि हमने पहले तांगा चालकों को ऑटो चलाने की लिए प्रेरित किया था और उनके लिए ऑटो लॉन भी दिलवाने के लिए भी तैयार थे लेकिन तांगा चालकों ने ऑटो चलाने से इंकार कर दिया।

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