Thursday, September 09, 2010

काहे को दुनिया बनायीं...

भगवान् ने धरती बनाते समय कितनी मशक्क्त की होगी इसका आप और हम शायद अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते। उन्होंने धरती पर प्रकृति को इसलिए निर्मित किया था ताकि यहाँ रहने वाले जीव-जंतु ताज़े भोजन और ताज़ी हवा का आनंद ले सके, किन्तु आज वही मानव भगवन की श्रष्टि "प्रकृति "को नष्ट करने में लगा हुआ है। आज का आधुनिक जीवन जीने वाला मानव अपने आस-पास का वातावरण इस कदर आधुनिकता से भरा हुआ चाहता है कि वह प्रकृति को भी अपने इरादों के बीच में आने नहीं दे रहा और उसे नष्ट किया जा रहा है। क्या पेड़-पौधों और क्या वृक्ष सबको नष्ट कर उनके स्थान पर खुद के लिए बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर ली है और यही उसका मकसद भी बन चुका हैं। यह देख भगवान् भी मायूस हो गया होगा और यह विचार कर रहा होगा कि जिसके लिए मैंने प्रकृति बनायीं वही उसे नष्ट करने में तुला हुआ है, उसके लिए यह कहना मुश्किल नहीं होगा कि मैंने जो दुनिया बनायीं उस दुनिया के लोग इतने हैवान कैसे हो सकते ? उन्होंने ये सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनके दिए हुए तोहफों का ज़मीन पर रहने वाले इस कदर सर्वनाश करेंगे। अब तो वह शायद यही गुनगुना रहे होंगे कि "काहे को दुनिया बनायीं मैंने, काहे को दुनिया बनायीं..."

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